महाशिवरात्रि – महा शब्द से अर्थ है सभी रात्रियों से श्रेष्ठ रात्रि। हिंदू धर्म में 10 रात्रियों का महत्व बताया गया है, 9 नवरात्र की रात्रि तथा एक महाशिवरात्रि। जैसी सनातन धर्म में मान्यता है, शिव अनादि हैं, अर्थात् उनका जन्म कब हुआ ये कोई नहीं जानता, उसी प्रकार कहा जाता है कि, महाशिवरात्रि के दिन भगवान भोले नाथ तथा माता पार्वती का शुभ विवाह हुआ था। ये तिथि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी होती है
महाशिवरात्रि कब और क्यों मनाई जाती है?
एक और कथा के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को जब शिवजी ने अपने कंठ में रोक लिया था, तब विष के प्रभाव को कम करने के लिए शिवजी को रात्रि में जगाए रखने के लिए सभी देवताओं तथा दैत्यों ने तरह – तरह के वाद्य यंत्र बजाकर , नृत्य करते हुए शिव जी को रिझाए रखा था, जिससे मूर्छा ना आए। इसलिए इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है
पौराणिक कथा के अनुसार भोलेनाथ ने जिस दिन सृष्टि में आकार रूप (शिवलिंग) लिया था, उस दिन सारी सृष्टि ने खुश होकर उत्सव मनाया था, जिसे महाशिवरात्रि के रूप में जाना जाता है
महाशिवरात्रि पर व्रत का महत्व
यदि पौराणिक कथाओं की बात करें तो जब शिवजी ने विश्व कल्याण के लिए हलाहल विष का पान किया तो उन्हें जगाए रखने के लिए सभी ने रात्रि जागरण किया तथा व्रत किया। इसी कारण महाशिवरात्रि के दिन व्रत करने की प्रथा है। व्रत करने से मानसिक और शारीरिक शुद्धि भी होती है।
महाशिवरात्रि पर्व उपासना का भी पर्व है
इस दिन शिव भक्त अपने आराध्य को रिझाने के लिए कई प्रकार की उपासनाएं करते हैं। मंत्र उपासना सबसे आसान उपाय है। बीजाक्षर मंत्र “ॐ” का जाप के साथ – साथ पंचाक्षर मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का भी जप किया जाता है। “महा रुद्राभिषेक” द्वारा भी शिव भक्त उपासना करते हैं।
महाशिवरात्रि की कथा
महाशिवरात्रि पर्व की कथा पुरातन काल में एक शिकारी चंद्रभानु जो एक साहूकार का कर्जदार था। उसे कर्ज न चुकाने के कारण साहूकार ने शिव मंदिर में ही कैद किया था। शिव पूजन के बाद जब साहूकार ने शिकारी को कर्ज लौटने के लिए कहा तो चंद्रभानु ने एक दिवस का समय और मांगा। साहूकार ने कहा ठीक है।
शिकारी, शिकार हेतु जंगल में गया और शिकार के इंतजार में एक बेल वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। संयोग से उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था। शिकार की प्रतीक्षा में शिकारी अनजाने ही बेल वृक्ष से पत्ते तोड़ तोड़कर नीचे गिराने लगा, जो वहां स्थापित शिवलिंग पर गिर रहे थे। इस प्रकार उस शिकारी का शिवरात्रि का पूजन संपन्न होता रहा। कुछ देर पश्चात एक गर्भवती हिरणी वहां से गुजरी तो शिकारी ने उस पर लक्ष्य संधान किया। हिरणी बोली मेरा प्रसव समय समीप है, इस समय मुझे मारकर तुम दो हत्याओं के दोषी बनोगे, अतः तुमसे निवेदन करती हूं कि, मुझे इस बालक को जन्म देकर इसके पिता को सौंपने तक का समय दो, मैं शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी।
शिकारी को दया आ गई और उसने , हिरणी को जाने दिया। फिर बैठा – बैठा वृक्ष से पत्ते तोड़ने लगा। इस प्रकार उसका पूजन चलता रहा। दूसरी हिरणी दिखने पर जब शिकारी ने अपने बाण का संधान किया तो, वो हिरणी निवेदन कर बोली कि, मैं ऋतु से निवृत कामातुर हूं अतैव मुझे मेरे पति से मिलन के लिए ना रोको तुम्हे भारी दोष लगेगा। कुछ समय पश्चात मैं स्वयं तुम्हारे सम्मुख उपस्थित हो जाऊंगी। शिकारी ने उसे भी जाने दिया।
कुछ समय में एक हिरणी फिर निकली तो शिकारी ने लक्ष्य साधा , तो वो हिरणी याचना करने लगी कि, हे नर मुझे मेरे बालकों को इनके पिता तक सकुशल पहुंचा आने दो फिर मैं तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी। शिकारी बोला मैंने फल भी दो हिरणियों को जाने दिया है, वो अभी तक नहीं आईं। अब तुम्हे नहीं जाने दूंगा। वो हिरणी विलाप करने लगी और बोली कि, तुम श्रेष्ठ हो जब तुमने उन दोनों को जाने दिया तो मुझे भी जाने दो मैं वचन देती हूं कि शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी। शिकारी ने उसे जाने दिया और शिकार की प्रतीक्षा करने लगा। कुछ समय में वहां एक हिरण आया । शिकारी उसे देख प्रसन्न हो गया और धनुष उठा लिया।
ये देखकर हिरण बोला कि, तुमने मुझसे पहले भी तीन हिरणियों को यदि मार डाला है तो शीघ्र ही मेरा भी वध कर दो , किंतु यदि उन्हें जाने दिया है तो मुझे भी जाने दो, अन्यथा वे अपने वचन का निर्वहन नहीं कर पायेंगीं। क्योंकि मैं ही उन तीनों का पति हूं।
मैं वचन देता हूं कि अपने बच्चों को सुरक्षित करके तीनों पत्नी सहित तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगा। शिकारी ने उसकी बात मान ली और जाने दिया। इस प्रकार पूरे दिन चंद्रभानु ने कोई भी हिंसा नहीं की और शिव पूजन भी किया तथा अनजाने ही व्रत भी पूर्ण हुआ। इस कारण मोक्ष की प्राप्ति हुई और अगले जन्म में भी पूर्व जन्म का ज्ञान रहा और शिवरात्रि के व्रत के महत्व का पालन तथा प्रचार राजा बनकर भी करते रहे ।
Share