कविता

नशे ने मिटा डाला

नशे ने मिटा डाला

विधा-पद्य
कविता - "नशे ने मिटा डाला"

नशे ने मिटा डाला

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नशे में डूब गया इंसान है,
कठिन लहरों में आया एक तूफान है,
खुद को पालनहार से कर देता यह दूर है ,
दुनिया फिर भी इस नशे में चूर है।
सुकून छीनकर यह गमों में डुबो देता है,
नशा व्यक्ति की सारी खुशियाँ छीन लेता है।
प्यार से भरापूरा परिवार था जिसका,
नशे ने तार- तार कर दिया संसार उसका।
अरमान दिल के देखो सब धूमिल हो गए,
खुशनुमा सारे लम्हे अब बोझिल हो गए।
इस नशे ने मान चकनाचूर कर दिया,
संकटों में खड़े रहने वाले दोस्तों से भी दूर कर दिया।
विषपान कर खुद से खुद का काम तमाम कर दिया,
दुनिया हँस रही है उन पर, इस नशे ने उन्हें बदनाम कर दिया।

डॉ मंजुला सिंघल
ग्वालियर, मध्यप्रदेश

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