कहानी

क्या मान बस बेटे बढ़ाते है?

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

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बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

ईश्वर की लीला देखिए एक के बाद एक तीन बेटियां आ गई एक बेटा दे देता इनमे से तो जीवन तो सफल हो जाता!"
मानसी छोटी बेटी को दूध पिलाते हुए पति देवेश से बोली।

" क्यों चिंता करती है तू मानसी देखना हमारी बेटियां बेटों की तरह नाम रोशन करेंगी !" देवेश ने मानसी को समझाया।

बेटी

देवेश ने तीनों बेटियों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी सीमित आमदनी में भी वो तीनों को अच्छी शिक्षा दे रहा था।
तीनों बेटियों ने भी सदा देवेश और मानसी का मान ही बढ़ाया पर मानसी के दिल से बेटा होने की कसक खत्म ही नहीं हो रही थी।

बेटी

" सुनिए जी आपको पता है पड़ोस के शर्मा जी का बेटा इंजीनियर बन गया है कैंपस प्लेसमेंट में पूरे तीस लाख का पैकेज लगा है उसका!" एक दिन मानसी देवेश से बोली।

" ये तो अच्छी बात है शर्मा जी ने उसकी पढ़ाई में कोई कोर कसर भी तो नही छोड़ी खुद रूखी सूखी खा बेटे को पढ़ाया अब उनके दिन संवर जायेंगे !" देवेश अखबार पढ़ता हुआ बोला।

" हां उनके दिन तो संवर जायेंगे पर हम तो हमेशा ऐसे ही रहेंगे बेटियां तो ससुराल चली जायेंगी हमारा कोई सहारा नहीं रहेगा !" मानसी अफसोस करती हुई बोली।

बेटी

" मानसी मैंने तुमसे कितनी बार कहा है हमारी बेटियां ही हमारे बेटे जैसी हैं हमारा हमेशा मान बढ़ाती हैं फिर भी तुम्हे जाने इतने साल बाद भी बेटा ना होने का अफसोस क्यों है !!" देवेश अखबार साइड रख बोला।

" बेटियों को कितना बेटा बेटा कह लो पर सच यही वो रहती बेटियां ही हैं बुढ़ापे में मां बाप की देखभाल तो बेटा ही करता है।" मानसी तनिक गुस्से में बोली देवेश कुछ बोलने की जगह उठकर नहाने चला गया।

अपने कमरे में पढ़ रही तीनों बेटियों को हमेशा की तरह ये सुन बुरा लग रहा था कि उनकी मां एक बेटे के लिए इतना दुखी रहती हैं। सबसे छोटी शान्या को तो बेटा कहलाया जाना भी गलत लगता बेटी होना कोई गुनाह तो नहीं जो बेटियों को मेरी बेटी नहीं बेटा है कह संबोधित किया जाता है। शान्या सोचने लगी पर बोली कुछ नहीं।

वक्त का पहिया घूमा और देवेश और मानसी की बड़ी बेटी श्रेया बैंक में नौकरी करने लगीं दूसरी बेटी श्रीति ने सीए में दाखिला लिया था और छोटी शान्या बीटेक की तैयारी करने लगी।

" देखा मानसी आज हमारी बेटी की कितनी अच्छी नौकरी लगी है बहुत जल्द बाकी दोनों भी अपने पैरों पर खड़ी हो जाएंगी फिर देखना तुम्हे खुद लगेगा कि तुम तीन बेटियों की नही बेटों की मां हो !" देवेश बेटियों को गले लगाता हुआ बोला।

बेटी

" हां पर एक दिन तीनों ससुराल चली जायेंगी क्योंकि हैं तो बेटियां ही बेटा होता तो साथ रहता !" मानसी बोली और काम में लग गई।
श्रीति भी सीए बन गई और आईसीएआई के कैंपस प्लेसमेंट में उसे 18 लाख का पैकेज मिला। श्रीति के सीए बनने के अगले साल ही शान्या की बीटेक हो गई और उसे तो पूरे बत्तीस लाख का पैकेज मिला।

" देखो मानसी आज मेरे तीन बेटे हैं !" देवेश खुशी से बोला।
" पापा बेटी होना गलत होता है क्या?" आज शान्या बोल ही पड़ी।
" नहीं तो बेटा अगर ऐसा होता तो हम क्यों तुम्हे इतने प्यार दुलार से पालते!!" देवेश हैरानी से बोला।

" तो पापा क्यों ये कहा जाता की बेटी-बेटे की तरह मान बढ़ाएगी या मेरी बेटी तो मेरा बेटा है क्यों बेटी को बेटी ही नहीं माना जाता है
क्या बेटियां बेटी की तरह मान नहीं बढ़ा सकती क्या मान बढ़ाने का हक बेटे को ही है क्यों बेटों को कभी नहीं बोला जाता ये तो मेरी बेटी है !" शान्या मानो आज अपने मन की पीड़ा कह देना चाहती थी।

देवेश अचरज से कभी मानसी को कभी शान्या को देख रहा था कितनी बड़ी बात कह गई आज उसकी बेटी हम बचपन से बेटियों को बेटा बोलते हैं
बेटों को कभी बेटी नहीं बोलते क्यों हम बचपन से ही अपने बच्चों में ये भेदभाव सा करते क्यों नहीं बोलते की मेरी बेटी मेरी बेटी है या मेरी बेटी ने मान बढ़ाया ।  उसके मन में ऐसी बहुत सी बाते घूमने लगी।

" बेटी ऐसा कुछ नही है मुझे माफ कर दे तू तुम मेरी बेटियां हो मेरा अभिमान और मुझे फक्र है तुमने बेटियां के रूप में मेरे घर
जन्म लिया बेटियां बन मेरा मान बढ़ाया मैं तो गर्व से कहूंगा मेरी बेटियों ने बेटों से बढ़कर मेरा मान बढ़ाया है मुझे गर्व है मैं तीन बेटियों का पिता हूं !" देवेश बेटियों को सीने से लगा भरे गले से बोला।

आज मानसी के मन पर पड़ा बेटे का परदा भी हट गया उसे भी आज तीन बेटियों की मां होने पर गर्व था।
मानसी और देवेश ने धीरे धीरे तीनों बेटियों की शादी भी कर दी पर उनकी बेटियों ने अपने भावी जीवन साथी के आगे यही शर्त रखी थी की वो उनकी पत्नी बनने के साथ साथ हमेशा अपने मां बाप की बेटियां भी रहेंगी उनकी देखभाल भी करेंगी।

दोस्तों जमाना कितना बदल गया हो पर अभी भी कुछ लोगों के मन से बेटी बेटे का भेद नहीं जाता जबकि बेटियां भी आज मां बाप की देखभाल कर रहीं हैं।

साथ ही हम हमेशा बेटियों की उपलब्धि को ये कह छोटा कर देते की तू बेटी नही मेरा बेटा है जबकि बेटी बनकर वो उपलब्धि पाई है तो बेटी बनाकर

ही उसे स्वीकार करो क्यों बेटी को बेटा जैसा बोल बेटियों की कीमत कम करनी क्योंकि मान तो बेटियां भी बढ़ाती हैं ।
बेटी
आपकी दोस्त
संगीता

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