कुछ लड़के

अदालत में आज बहुत ज्यादा भीड़ थी लोग गुटों मे खुसर फुसर कर रहे थे। सबकी जुबान पर एक ही सवाल था कि शहर के नामी व्यापारी रमेश बाबू की माताजी ने उनपर मुकदमा क्यों किया है। ऐसी क्या वजह हो गई कि सब कुछ होते हुए , हर सुख सुविधा होते हुए भी क्यों एक माँ को अपने बेटे पर मुकदमा करने की जरूरत पड़ी। जरूर रमेश बाबू माँ को सताते होंगे वरना कोई भी माँ अपने बेटे के खिलाफ मुकदमा क्यों करती। जैसे जैसे समय बीतता जा रहा था भीड़ भी बढ़ती जा रही थी और साथ ही बढ़ रहा था शोर।

तभी जज साहब का आगमन हुआ और ऑर्डर ऑर्डर की आवाज़ गूंजने लगी उस आवाज़ के गूंजते ही सब शांत हो गये।
केस की जिरह शुरु हुई दोनों पक्ष के वकीलों ने अपना पक्ष रखा। और रमेश बाबू की माताजी शांति देवी को कटघरे में हाजिर होने का एलान हुआ।
एक सभ्य सी औरत अपनी कुर्सी से उठकर कटघरे की तरफ बढ़ने लगी।
यही कोई 70 साल कि महिला थी वो सफ़ेद साडी सलीके से पहनी हुई थी गोरा रंग जिसपर बुढ़ापे के साथ साथ लाचारी के निशान भी थे।
" हां तो माताजी क्या वजह है जो आपने अपने बेटे पर ये मुकदमा किया है ?"जज ने महिला को देख सवाल किया।
" जज साहब मैंने अपने पति की मौत के बाद अपने बेटे की परवरिश अकेले की है पति का व्यापार भी संभाला पर अपने बेटे को जरा कष्ट नही होने दिया किन्तु मेरे बेटे का कहना है वो तो मेरा फर्ज था हर माँ करती है ये तो मैंने क्या खास किया!" शांति देवी बोलीं।
" हाँ तो जज साहब मैने क्या गलत कहा हर माँ बाप अपने बच्चों के लिए सब करते हैं पर कोई भी अपने बच्चों को कोर्ट में नहीं घसीटते! " सामने के कटघरे मे खड़े रमेश बाबू बोले।
" माताजी आप अपनी जगह ठीक है और आपके बेटे अपनी जगह पर आपने ये मुकदमा क्यों किया है क्या आपका बेटा आपको घर से निकाल रहा है ? या आपको खाना नहीं देता क्या वजह है इस मुकदमे की और आप कोर्ट से क्या चाहती हैं !" जज ने शांति देवी से सवाल किया।
" जज साहब क्या घर में रखना और समय से खाना देना काफी होता है क्या इससे एक माँ का कर्ज चुक जाता है ?" जवाब देने की जगह शांति देवी ने जज से ही सवाल किया।
" माताजी आप बताइये तो आप चाहती क्या हैं ?" जज परेशान हो बोला।
" जज साहब मैं चाहती हूँ एक माँ के रूप मे मैंने जो भी अपने बेटे के लिए किया उसके जन्म से ले उसे काबिल बनाने तक। मेरा बेटा उस कर्ज को उतार दे !" शांति देवी ने शांति से जवाब दिया। अदालत में खुसर फुसर फिर से शुरु हो गई । अब हर कोई शांति देवी को दोषी बता रहा था भला कोई माँ अपने बेटे की परवरिश की कीमत मांगती है कैसी माँ है ये ।
" ठीक है मैं कीमत देने को तैयार हूँ आप दाम बोलिये ये बात आप मुझसे घर पर भी बोल देती यहां कोर्ट मे ये सब ड्रामे करने की जरूरत क्या थी बोलिये कितने का चेक काटूँ !" रमेश बाबू अपनी जेब से चेक बुक निकालते हुए बोले ।
" जज साहब मेरा बेटा हिसाब किताब का बहुत पक्का है और आप इतने बड़े आदमी मुझे पता है आप दोनों मेरे साथ नाइंसाफी नही करोगे। मेरा बेटा जब होने वाला था तब मुझे बहुत सी परेशानियाँ हुई डॉक्टर ने तो गर्भ गिराने तक को बोल दिया था पर मैने अपनी जान पर खेल इसे जन्म दिया।
ये दूसरे बच्चों से हर चीज में कमजोर था इसलिए इसका कोई दोस्त नहीं बनता था मैं इसकी दोस्त बनी ।
इसकी परवरिश मे कोई कमी ना रह जाये इसलिए मैने और मेरे पति ने दूसरे बच्चे का ख्याल भी छोड़ दिया।
ये अपनी कक्षा में बहुत कमजोर था इसे घंटों घर में सिखाती पढ़ाती थी मैं बिना झुंझलाये इसकी परेशानियाँ बार बार दूर करती थी मैं।
ये काफी बड़ा होने के बाद भी बिस्तर गीला कर देता था मेरे पति झुंझला जाते थे तो मैंने इसे लेकर अलग कमरे में सोना शुरु कर दिया सारी सारी रात इसे इधर उधर करती थी कि ये गीला ना रहे।
धीरे धीरे ये बाकी बच्चों की तरह सामान्य होने लगा पर तभी मेरे पति की मृत्यु हो गई उनका व्यापार डूबने लगा तब अपने जेवर बेच व्यापार संभाला साथ ही इसपर भी पूरा ध्यान् रखा जिससे ये वापिस ना पिछड़ जाये।
लोगों ने मुझे दूसरी शादी का सुझाव दिया ये बोल कि एक औरत के लिए अकेले जिंदगी काटनी बहुत मुश्किल है कुछ रिश्ते भी आये पर मेरा बेटा मुझे एक पल नहीं छोड़ता था मैं कैसे इसके लिए दूसरा पिता ला सकती थी।
" ये बोल शांति देवी रुक गईं उनकी सांस फूलने लगी। उनके वकील ने उन्हें पानी पिला सामान्य किया।
" बाहर कुछ लोगों की गंदी नज़र सहती घर आ बेटे के सामने सामान्य बनी रहती रात को जब ये सो जाता तब चुपचाप आंसू बहाती।
कितनी बार खुद को बेटे सहित खत्म करने का विचार आया पर एक माँ ऐसा कैसे कर सकती थी रोज मरती और रोज अपनी संतान के लिए खुद को जिंदा करती हुई समय गुजारने लगी कि एक दिन बेटा बड़ा होगा तो सब ठीक होगा।
बड़े होते ही इसने अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली धीरे धीरे सारा व्यापार इसे सौंप मैं निश्चिन्त होने लगी कि अब पोते पोती को खिलाते हुए चैन से बुढ़ापा काटूंगी पर ....!" ये बोल शांति देवी ने लम्बी सांस ली।
" पर क्या माता जी ?" जज ने उत्सुकता से पूछा ।
" पर इसकी पत्नी यानी मेरी बहु को मेरा घर मे रहना ही नही सुहाता था वो बच्चो को क्या खिलाने देती मुझे ।
धीरे धीरे मुझे घर के पिछवाड़े कि एक कोठरी दे दी गई जहाँ नौकरानी मेरे लिए खाना दे जाती थी।
मैने बेटे से कहा मुझे यहां नही सबके साथ रहना हो तो इसने यही कहा "सविता ( बहु) को तुम्हारा घर रहना पसंद नही उसे बंदिश लगती है वो नहीं चाहती कि तुम उसकी सहेलियों या रिश्तेदारों के सामने आओ इसलिए तुम यहीं रहो । "
"मैं इसमे भी तैयार हो गई पर इससे कहा कि कम से कम तू तो मेरे पास कुछ पल को आ जाया कर तो जज साहब इसने पता है क्या कहा ....कि मैं तुम्हे पालूँ या तुम्हारे पास आकर बैठूं। एक माँ पर क्या बीती होगी जज साहब सोचिये आप ...मैंने इसकी हर जरूरत को पूरा करने के साथ साथ इसे भी पूरा वक़्त दिया और अब ये मुझे ऐसे कहता है !" ये बोल शांति देवी रोने लगीं।
" माता जी आपके बेटे ने जो किया आपके साथ वो गलत है पर इसके लिए शायद कानून में कोई सज़ा नही है !" जज साहब बोले।
" मुझे सजा दिलानी भी नहीं बेटा। जिस बेटे को सारी दुनिया के ताने सुन बड़ा किया उसे मैं कैसे सजा दिला सकती हूँ !" शांति देवी बोली।
" फिर आपको क्या चाहिए अपने बेटे से क्या कीमत है आपके कर्ज की ?" जज बहुत असमंजस में था।
" साहब मेरे कर्ज की कीमत है एक कप चाय ...!" शांति देवी बोलीं।
" क्या ....???" जज के साथ साथ रमेश बाबू और अदालत में मौजूद सभी लोगों की आँखें आश्चर्य से फैल गईं। सबकी जुबान पर एक बात थी ये कैसा मुकदमा है जिसमे एक माँ ने अपने बेटे से एक कप चाय मांगी।
" हां साहब मैं चाहती हूँ रोज सुबह मेरा बेटा मुझे चाय देकर जाये कामवाली नहीं !" शांति देवी नम आँखों से बोलीं।
" पर इससे आपको क्या हासिल होगा ?" जज आश्चर्य से बोले। " जज साहब एक माँ कैसे बताये उसे उस एक कप चाय से कितना सुकून मिलेगा जो उसका बेटा उसे आकर पिलायेगा।
इस बहाने कम से कम मैं रोज बेटे को तो देख पाऊँगी वरना तो महीनों ये मेरे पास नही आता।।
उस एक कप चाय के बदले मैं अपने बेटे के सिर पर हाथ रख उसे आशीर्वाद तो दे पाऊँगी इसी बहाने उसे छू कर भी देख लूंगी।
उस एक कप के बहाने कम से कम मेरा बेटा ये तो देख लेगा मैं जिंदा भी हूँ या उसकी बाट जोहती चली गई !" शांति देवी ने नम आँखों से कहा... शांति देवी की बात सुनकर अदालत में हर एक की आँखें नम हो गईं क्योंकि कहीं ना कहीं सब जिंदगी की जदोजहद में अपने बूढ़े माँ बाप को सबसे ज्यादा नज़रअंदाज़ करते हैं।
सभी अपनी अपनी आँखें पोंछने लगे उन सभी में जज साहब भी थे तभी वहाँ एक आवाज़ हिचकियाँ ले रोने की गूंजी सबके सब उस दिशा मे देखने लगे।
रमेश बाबू कटघरे में बैठे जोर जोर से रो रहे थे । शांति देवी अपने कटघरे से निकल बेटे के पास पहुँची और उसका सिर सहलाती हुई बोलीं " लगता है ज्यादा कीमत मांग ली मैने अपने बेटे से जिसे देने में वो असमर्थ है !"
" नहीं माँ मुझे माफ़ कर दो तेरे किसी कर्ज को चुकाने की मेरी औकात नहीं मेरी क्या किसी बेटे की औकात नहीं है पर तू मुझसे बदले में बहुत कम चाह रही है अब तेरा ये बेटा सिर्फ तेरे लिए चाय लाएगा ही नही तेरे साथ पियेगा भी खाना भी खायेगा क्योंकि अब तू घर के पिछवाड़े में नहीं हम सबके साथ घर में रहेगी हमारे साथ खायेगी पीयेगी !" रमेश बाबू माँ के कदमो से लिपट जोर जोर से रोते हुए बोले।
" ना मेरे बच्चे रो मत मैं तो बस तुझे देखना चाहती हूँ समय का कुछ नहीं पता मैं आज हूँ कल नही । इस हसरत के साथ नहीं मरना चाहती मैं कि बेटे को देखे इतने दिन हो गये बल्कि मरते वक्त मैं एक सुकून के साथ मरना चाहती हूँ !" शांति देवी बेटे को सीने से लगाती हुई बोली।
अब पूरी अदालत में सिर्फ सिसकियां गूंज रही थीं जज साहब को अब फैसला सुनाने की जरूरत ही नहीं थी क्योंकि दोनों पक्षों में समझौता जो हो गया था अब तो उन्हें घर भागने की जल्दी थी क्योंकि उनकी माँ भी जाने कितने दिनों से उनका चेहरा देखने को तरस रही थी।
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