कहानी

माता-पिता पति के हो या पत्नी के वो दोनो के होते है।

माता पिता पति के हो या पत्नी के वो दोनो के होते है।

" हेलो पापा कैसे हैं आप ?"

रिया ने अपने पिता सुधीर जी से फोन पर हालचाल पूछा।

"ठीक हूँ बेटा तू बता जवाई बाबू बच्चे सब कैसे है?" सुधीर जी ने पूछा।

" पापा यहाँ सब ठीक है पर मुझे लगता है आप उदास हो !" रिया बोली।
" बेटा तेरी मम्मी के जाने के बाद घर खाली खाली सा हो गया है ।

सक्षम ( रिया का भाई) ने  बोला है वो जल्द से जल्द अमेरिका से भारत आ रहा है पर मैं भी जानता हूँ एक दम से ये संभव नहीं फिर भी बेचारा मेरा मन बहलाने को रोज वीडियो कॉल करता है बहू और बच्चों से बात कराता है !" सुधीर जी बोले।

" पापा आप यहाँ आ जाइये कुछ दिन को आपका मन बहल जायेगा !" रिया ने कहा।
" नहीं बेटा पिता बेटी जवाई के घर कैसे रह सकता है ?" सुधीर जी बोले।
" पापा किस जमाने की बात कर रहे हो आप आप भूल रहे हैं आपकी बेटी कमाती है और उसे कमाने लायक आपने बनाया पर! " रिया बोली।

"वो तो सभी माँ बाप बनाते हैं इसमे कौन सी बड़ी बात ...
चल अब रखता हूं सक्षम की वीडियो कॉल आ रही है!
"सुधीर जी ने इतना कह फोन काट दिया पर रिया के कानों मे सुधीर जी के शब्द गूंजने लगे क्योंकि यही शब्द कभी उसने भी कहे थे...

आगे की कहानी जानने से पहले आपको थोड़ा पीछे लिए चलते हैं।

सुधीर जी और सरला जी के दो बच्चे रिया और सक्षम। रिया ने एम बी ए किया था और एक अच्छी फर्म मे नौकरी करती है उस की शादी आज से आठ साल पहले उसी की पसंद के शशांक से हुई थी जो एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।

सक्षम की शादी छ साल् पहले माता पिता ने अपनी पसंद से करवाई थी शादी के कुछ महीने बाद ही उसकी कंपनी ने उसका ट्रांसफर अमेरिका कर दिया और वो अपनी पत्नी के साथ वहां चला गया हलाकि उसने माता पिता को भी ले जाना चाहा पर ये संभव ना हुआ।

रिया को शादी के बाद ससुराल मे रहना बंदिश लगता था उसने शशांक को अलग घर लेकर रहने के लिए दबाव बनाया हालाकि शशांक को ये मंजूर नहीं था उसने रिया को समझाया भी कि मेरे माता पिता ने बड़ी मुश्किलों से मुझे इंजीनियर बनाया है।

तब उसका ये कहना था अपने बच्चों को तो हर माँ बाप पढ़ाते इसमे कौन सी बड़ी बात है पर इसके लिए बच्चे अपनी स्वतंत्रता छोड़ दे ये कहाँ तक सही।

उस वक़्त सुधीर जी और सरला जी ने भी बेटी को समझाया था पर वो ना मानी वो रोज रोज के कलेश से हार कर शशांक के माता पिता गाव चले गये। अभी छह महीने पहले सरला जी का देहांत हो गया था तो सुधीर जी अकेले रहते थे। आज जब रिया के पापा ने उसके कहे शब्द दोहराये तो उसे बड़ा अजीब लगा।

माता पिता पति के हो या पत्नी के वो दोनो के होते है।

" शशांक पापा वहां बहुत अकेला महसूस कर रहे है।
मैने तो कुछ दिन को यहाँ आने को कहा था उन्हे पर उन्होंने मना कर दिया तो क्यो ना हम बच्चों को लेकर उनके पास चले उन्हे अच्छा लगेगा। " रिया शशांक के पास जाकर बोली।

" हां हां क्यो नहीं मैं छुट्टी के लिए मेल कर देता हुँ तुम भी ले लो छुट्टी बच्चों की छुट्टिया चल ही रही है !
" शशांक एक दम से तैयार होता बोला।

" अरे वाह आप तो एक दम तैयार हो गये मुझे तो लगा था आपको मनाना पड़ेगा!" रिया हँसते हुए बोली।
" रिया अपने माँ बाप के पास जाने के लिए मना करने का सवाल ही नहीं होता तुम्हारे पिता मेरे भी पिता हैं हमारे वहां जाने से उनको खुशी मिले इससे बड़ी कोई बात नहीं मेरे लिए !

" शशांक ने लैपटॉप में लगे हुए ही कहा। रिया शशांक के मुंह से ये सोच पुरानी बाते सोचने लगी कैसे वो शशांक के माता पितासे गांव मे मिलने जाने को ये कह कर इंकार कर देती थी की तुम्हारे माता पिता हैं तुम जाओ !

दो दिन बाद रिया और शशांक बच्चों को लेकर सुधीर जी के पास पहुँच गये रास्ते में रिया ने पिता को गिफ्ट करने के लिए एक टेबलेट भी खरीदा ।

" अरे वाह मेरे गोलू मोलू ( सुधीर जी रिया के दोनों बच्चों को गोलू मोलू ही कहते थे) आ गये ! " सुधीर जी दोनों बच्चो को गोद में उठाते हुए बोले। रिया पापा से मिल मुस्कुराते हुए रसोई की तरफ चली गई।

थोड़ी देर बाद वो चाय नाश्ते साथ वापिस आई तो शशांक पापा को टेबलेट चलाना सिखा रहा था पापा शशांक के साथ बहुत खुश थे।
उसे याद आया वो कभी अपने ससुराल चली भी जाती है तो सबसे कटी ही रहती है।

इन सब चीजों पर उसने पहले गौर नहीं किया पर जाने क्यो अब पापा का अकेलापन देख उसे महसूस हो रहा था उसके सास ससुर भी तो अकेले हैं।
शशांक ने वहां एक बेटे की कमी पूरी कर दी थी उसके पिता के साथ वो बड़े अपनत्व से रह रहा था।

जबकी शशांक पहली बार इतने दिन के लिए ससुराल आया था वरना हर बार बस रिया और बच्चों को लेने आता था।
" शशांक अब हमें चलना चाहिए !" चार दिन पापा के साथ बिता रिया शशांक से बोली।

" अरे इतनी जल्दी हमने तो एक हफ्ते की छुट्टी ली है ना अभी तो बच्चे अपने नाना के साथ और खेलना चाहते हैं क्यों बच्चों!
" शशांक हैरान हो बोला।
" बच्चे तो अपने दादा दादी साथ भी खेलना चाहते हैं क्यों बच्चों ?" रिया मुस्कुरा कर बोली तो शशांक हैरानी से उसे देखने लगा।

" ये...हम दादा दादी पास भी जाएंगे !" बच्चे खुश होते हुए बोले।
" बिल्कुल जाएंगे आखिर वो भी तो हमारा इंतज़ार करते हैं!" रिया बोली।

रिया मे आया ये सुखद परिवर्तन जहाँ शशांक को आश्चर्य चकित कर रहा था वही वो खुश भी था।
रिया के पिता भी बेटी में आए बदलाव को देख खुश थे और उन्होंने बेटी जमाई को हँसते हुए विदा किया।

रास्ते में रिया ने अपने सास ससुर के लिए भी बहुत से गिफ्ट खरीदे।

" बेटा इन सबकी क्या जरूरत थी ?" ससुराल पहुँच जब रिया ने गिफ्ट दिये तो उसकी सास निर्मला जी बोलीं।
" मम्मी जी ये आपके बेटे की कमाई के है और उन्हें कमाने लायक तो आपने बनाया तो उनकी कमाई पर आपका भी तो हक है !
" रिया बोली तो उसके सास ससुर भी हैरान रह गए।

" शशांक तुम मम्मीजी पापाजी से वापिस चलने को कहो ना !" रात को रिया शशांक से बोली।
" रिया मैं नहीं जानता तुममें ये बदलाव क्यों आया हालांकि ये सुखद है पर कुछ दिनों का हुआ तो !" शशांक बोला।

" नहीं शशांक जैसे तुममें मेरे पापा का ख्याल रखा उन्हे अपने पापा सा सम्मान दिया उससे मुझे समझ आ गया कि माँ बाप पत्नी के हो या पति के वो दोनो के होते है और अगर दोनो एक दूसरे के माँ बाप को दिल से अपनाएं तभी रिश्ता मजबूत और खूबसूरत् होता है और तभी घर मे खुशिया आती है मैने जो अतीत मे किया गलत किया पर उसे बदल नहीं सकती मैं लेकिन अब वो भविष्य मे नहीं होगा इतना वादा जरूर कर सकती हुँ !
" रिया नम आँखों से बोली।

अगले दिन रिया ने अपने किये की माफ़ी मांगते हुए सास ससुर से घर चलने का आग्रह किया जिसे थोड़ा नानुकर के बाद उन्होंने स्वीकार कर लिया क्योंकि अपने बच्चों के साथ रहने की इच्छा तो हर माँ बाप की होती है।


आपकी दोस्त
संगीता

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