" हां बापू !" अठारह साल का किशना भी बहुत कुशलता से पेड़ पर कुल्हाड़ी चला रहा था
अचानक रामदीन को अपनी कुल्हाड़ी पर लाल धब्बा नजर आया ।
" ये क्या है?" वो खुद से ही बोला और उस धब्बे पर हाथ लगाया ..
" खून ...खून " चिल्लाता हुआ रामदीन बेहोश हो गया।
किशना कुल्हाड़ी छोड़ पिता की तरफ भागा थोड़ी देर में बाकी लकड़हारे भी वहां इक्कट्ठे हो गए ...
कुल्हाड़ी पर लगे खून पर किसी की नजर नही गई सब रामदीन को संभालने में लगे थे थोड़ी देर बाद
रामदीन अपने घर की चारपाई पर पड़ा था। गांव के वैद ने बताया था किसी सदमे के कारण रामदीन बेहोश हुआ है।
कहानी को आगे बढ़ाने से पहले थोड़ा सा पात्रों के बारे में जान लेते हैं...
रामदीन एक लकड़हारा है जो कॉन्ट्रैक्ट पर काम करता है कोई बड़ा काम मिलता है तो वो अपने गांव के छोटे लकड़हारों को
अपने साथ काम पर लगा लेता है।
रामदीन के पास अच्छा रुपया पैसा है फिर भी वो खुद साथ में काम करता है
क्योंकि उसका कहना है कि लकड़हारे को कुल्हाड़ी चलाना भूलना नहीं चाहिए वही उसकी जीविका जो होती है।
आज भी रामदीन को बड़ा कॉन्टैक्ट मिला था इसलिए वो गांव के कुछ लकड़हारों और अपने बेटे के साथ जंगल में लकड़ियां काट रहा था
दिसंबर का महीना था कड़ाके की ठंड के साथ घना कोहरा जंगल मे काम करना मुश्किल कर देता है
इसलिए वो जल्दी जल्दी काम खत्म करने की कह रहा था कि अचानक ये हादसा हो गया जिसके कारण रामदीन बेहोश हो गया और काम रुक गया।
बेहोश रामदीन को अचानक सपने में एक खून से भरा चेहरा नजर आया।
" कौन हो तुम तुम्हारा ये हाल कैसे हुआ?" रामदीन बेहोशी में बोला।
" मेरा ये हाल करने वाले तुम खुद हो और अब अनजान बन रहे हो !"
उस चेहरे ने रोते हुए कहां आंसुओं और खून से भरा चेहरा बहुत वीभत्स लग रहा था।
" मैने ...पर कब , कहां ?" रामदीन हैरानी से बोला।
" भूल गए आज ही तो तुमने मुझपर कुल्हाड़ी चलाई थी !" चेहरा बोला।
" मैने तो कुल्हाड़ी पेड़ पर चलाई थी तुम पर थोड़ी !" रामदीन बोला।
" तो मैं वही पेड़ तो हूं मेरे हत्यारे हो तुम मेरे ही क्यों मेरे कितने भाइयों के हत्यारे हो तुम ...
क्या मिला तुम्हे इतनी हत्याएं करके सोचो अगर यही कुल्हाड़ी कोई तुम्हारी टांगों पर चलाए तो ?" वो चेहरा गुस्से में बोला।
" नही मैं हत्यारा नही हूं ना मैने कोई खून किया मैं सिर्फ पेड़ काटकर अपनी जीविका चलाता हूं अपने परिवार को पालता हूं !
" रामदीन इतनी ठंड मे भी पसीने पसीने होता हुआ बोला।
" तुम हत्यारे हो ...
जंगल में रोज खून करते हो तुमने अनगिनत खून किए हैं।
क्या बिगाड़ा है हम हरे भरे पेड़ों ने तुम्हारा सारी जिंदगी तुम्हे कभी छाया देते ,
कभी खाना यहां तक की बरसात भी हम ही लाते, तुम बीमार होते तो दवाई भी हम देते तुम्हारे
पशुओं का चारा भी हम ही से है फिर भी तुम्हे हमारा खून करते लज्जा नहीं आती ...
क्या इतनी हत्याओं का बोझ उठा पाओगे तुम ...?"
चेहरा गुस्से में और ज्यादा डरावना हो गया था।
" नही चले जाओ तुम यहां से मैने कोई खून नहीं किया !" रामदीन चिल्लाया।
" तुम खूनी हो तुम खूनी हो तुम खूनी हो !" उस चेहरे के साथ वैसे ही अनेकों चेहरे आकर चिल्लाने लगे !
" जाओ तुम जाओ यहां से !" सुबह की पहली किरण के साथ ही रामदीन चिल्लाता हुआ उठ बैठा ।
" क्या हुआ जी आपको कोई भूत प्रेत का साया तो नही आपके ऊपर !"
तभी उस चीख सुन उसकी पत्नी रमिया वहां आ बोली।
" मैं हत्यारा हूं मुझे प्रायश्चित करना होगा मुझे प्रायश्चित करना ही होगा !"
रमिया की बात नजरंदाज कर रामदीन उठ कर जंगल की तरफ भागा।
पीछे पीछे उसकी पत्नी बेटा और गांव के लोग भागे।
Ravi Jindal
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