मौन हूँ मैं मुझे गूंगी मत समझना
औरत समझ मेरे वजूद से मत खेलना
जननी हूँ जन्म दे सकती हूँ जब तुम्हें
खेल है मेरे लिए हर आग से खेलना
परिस्थितियों के अनुरूप ढाला है मैंने खुद को
मौत के पलने मे झुला के पाला है मैंने खुद को
कोमल भले हूँ मै मुझे कमजोर ना समझना
आग है वजूद मे मेरे इस आग से मत खेलना
दुर्गा सी सौम्यता है गर मुझमे काली सा तेज भी है
सरस्वती सी शीतलता है गर मुझमे चामुंडा सा क्रोध भी है
माँ की ममता है मुझमे लुटा सकती वर्चस्व अपना
पर मुझे झुका देगा तू मत देख ऐसा कोई सपना
नारी को भोग्या समझने की 'ऐ'आदम तू भूल ना कर
श्रण मे विलुपत् हो जायेगा इक नारी के तेज से तू डर
देवी का दर्जा नही मांगती इंसान बन इंसानियत को समझ
नर नारी दोनो बराबर इक दूसरे के पूरक इस बात को समझ
तभी तू इतने बड़े संसार मे अपना वजूद ढूँढ पायेगा
सोच नारी ने ना दी गर्भ मे अपने जगह तो तू कहाँ जायेगा
Ravi Jindal
Sarni, Dist Betul MP
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