पद्य

चुनौती स्वीकार कर

विधा- पद्य
(घनाक्षरी छंद)

चुनौती स्वीकार कर

चुनौती स्वीकार कर

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हरिहरण घनाक्षरी छंद
चुनौती स्वीकार कर
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मत शर्मसार कर,
सुख-दुख टार कर,
धैर्य आज धार कर,
बैठ नहीं हार कर।

दंभ तार-तार कर,
जीवन सँवार कर,
जगत उद्धार कर,
कुछ चमत्कार कर।

नेह से निहार कर,
एकता प्रसार कर,
पर उपकार कर,
धर्म का संचार कर।

जननी को प्यार कर,
चुनौती स्वीकार कर,
शूरवीर वार कर,
शत्रु का संहार कर।


आतंकी हैरान हैं

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आतंकी हैरान हैं
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(मनहरण घनाक्षरी छंद)

झेलता आतंकी गाज,सहमा कश्मीर आज
चल रही हैं गोलियाँ,जाँ लहू लुहान हैं।

छोड़ दी है मानवता,साथ लिए दानवता
डराते बंदूक दिखा ,आतंकी हैवान हैं।

आतंकी के वार सहे, खूनी होली खेल रहे
सीमा पर तैनात ये,लड़ते जवान हैं।

हाथ हथियार धर, गोली खाके सीने पर
हौसले बुलंद रख, सैनिक कुर्बान हैं।


आपदा का भान कर

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आपदा का भान कर
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(मनहरण घनाक्षरी छंद)

आपदा का भान कर, शक्ति का संचार कर,
राह में संघर्ष कर, स्वेद बूँद पीजिए।

तेज का विस्तार कर, धुंध का विनाश कर,
हस्त में मशाल धार, ज्ञान-ज्योति दीजिए ।

नींद बैरी त्याग कर, हौसले बुलंद कर,
व्योम में उड़ान भर, लक्ष्य साध लीजिए।

कर्म निज मान कर, चुनौती स्वीकार कर,
साम, दाम, दंड,भेद, शत्रु नाश कीजिए।


हास्यरस में मनहरण घनाक्षरी

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हास्यरस में मनहरण घनाक्षरी
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पतिदेव दुराचारी,
इश्क की चढ़ी खुमारी,
आते-जाते नार छेड़ें,
कुछ नहीं भान है।

केश रोज़ करें काले,
गीत गाएँ मतवाले,
सीटी मारें खिड़की से,
मूँछों पे गुमान है।

प्रीत परवान चढ़ी,
सुंदरी से आँख लड़ी,
जूते खाए खोपड़ी ने,
टूटा अभिमान है।

हाथ-पैर तोड़ कर,
घर-द्वार छोड़ कर,
झूठे दौने चाट रहे,
पूछे न जहान है।


खगदल

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डमरू घनाक्षरी छंद
खगदल
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तरवर उड़ कर , नगर - नगर हर,
मगन पवन सम, गगन गमन कर।
समरस भर कर, सुखद वचन वद,
टहल सघन वन, चहक-चहक कर।
समझ-समझ कर, नव पथ पग धर।
सहज डगर चल, परख-परख कर।
ठहर-ठहर कर, उछल-उछल कर,
खगदल हरषत, शमन दमन कर।


डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
वाराणसी (उ.प्र.)

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