नेह की छतरी

विधा-मुक्तक

नेह की छतरी

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ढूँढ़ता मंजिल भटकता आज वन में आ गया।
नेह की छतरी बना सिर पुष्प मेरे छा गया।
मंद झोंके छू पवन के कर रहे अठखेलियाँ-
हरित आसन पीतवर्णी ताज मन को भा गया।


डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
वाराणसी (उ.प्र.)

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